कर्नाटक में सत्ता की कुर्सी को लेकर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच जारी खींचतान अब किसी से छिपी नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद से ही ‘ढाई-ढाई साल’ के मुख्यमंत्री पद को लेकर अटकलें लगाई जा रही थीं।
हालांकि, अब जबकि सिद्धारमैया ने स्पष्ट कर दिया है कि वे पूरे पांच साल तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे, और डीके शिवकुमार ने भी सार्वजनिक रूप से कहा है कि उनके पास ‘कोई विकल्प नहीं’ है और वह आलाकमान का फैसला मानेंगे, यह सवाल उठता है कि सिद्धारमैया अपनी कुर्सी बचाने में क्यों कामयाब रहे? यहां 7 ऐसे संभावित कारण दिए गए हैं जो सिद्धारमैया के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने में सहायक सिद्ध हुए हैं:
डीके शिवकुमार का दोहरा पद और आलाकमान का दबाव:
डीके शिवकुमार उपमुख्यमंत्री होने के साथ-साथ कर्नाटक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। सिद्धारमैया कथित तौर पर चाहते हैं कि शिवकुमार प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ दें, ताकि वे अपने किसी करीबी को उस पर बैठा सकें। शिवकुमार इसके लिए तैयार नहीं हैं। यह एक ऐसा पेंच है जो आलाकमान को किसी भी बड़े बदलाव से पहले सोचने पर मजबूर करता है, क्योंकि शिवकुमार पर किसी भी तरह का दबाव आंतरिक खींचतान को और बढ़ा सकता है।
आगामी बिहार चुनाव और OBC फैक्टर:
इसी साल अक्टूबर में बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। सिद्धारमैया कुरुबा समुदाय से आते हैं, जो कर्नाटक में एक बड़ा और प्रभावशाली पिछड़ा समुदाय है। ऐसे में, यदि कांग्रेस एक पिछड़े वर्ग से आने वाले मुख्यमंत्री को हटाती है, तो इसका सीधा नकारात्मक असर बिहार चुनाव पर पड़ सकता है, जहां कांग्रेस और INDIA ब्लॉक पिछड़े वोटों को साधने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल गांधी की दलित-पिछड़ों की राजनीति के लिए भी यह एक गलत संदेश होगा, इसलिए कांग्रेस आलाकमान कोई जोखिम नहीं लेना चाहता।
डीके शिवकुमार पर कानूनी शिकंजा (ED/CBI):
डीके शिवकुमार केंद्रीय एजेंसियों (ED और CBI) की जांच के दायरे में हैं और कुछ मामलों में जेल भी जा चुके हैं। ऐसे में, यदि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाता है और बाद में कोई कानूनी कार्रवाई होती है या उन्हें गिरफ्तार किया जाता है, तो यह पार्टी के लिए एक बड़ी राजनीतिक मुसीबत बन सकती है। यह आलाकमान के लिए एक बड़ा विचारणीय बिंदु है।
RCB के IPL जश्न में हुई भगदड़ का मामला:
हाल ही में RCB के IPL जीतने के बाद बेंगलुरु में जश्न के दौरान मची भगदड़ में कई जानें गई थीं। इस मामले में डीके शिवकुमार पर आरोप लगे थे कि उन्होंने ही आनन-फानन में जश्न मनाने का फैसला किया था और व्यवस्था में कमी रही। यह मामला अदालत में है और इसने शिवकुमार की छवि को कुछ हद तक प्रभावित किया है। ऐसे में, तुरंत उन्हें मुख्यमंत्री बनाना शायद आलाकमान के लिए उचित नहीं है।
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आलाकमान का ‘सही समय’ का फार्मूला:
सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस आलाकमान ने डीके शिवकुमार को यह आश्वासन दिया है कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, लेकिन ‘उचित समय’ पर। शिवकुमार सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि सोनिया गांधी जो भी कहेंगी, वह उसे मानेंगे। यह आलाकमान को अपनी शर्तों पर फैसले लेने का मौका देता है और शिवकुमार को इंतजार करने के लिए प्रेरित करता है।
स्थिर सरकार और पार्टी की एकजुटता:
कर्नाटक में सत्ता संतुलन काफी नाजुक है। सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच किसी भी बड़े बदलाव या सत्ता संघर्ष से पार्टी में खुलेआम गुटबाजी हो सकती है। इसका फायदा बीजेपी और जेडीएस जैसे विपक्षी दल उठा सकते हैं। कांग्रेस आलाकमान राज्य में एक स्थिर सरकार बनाए रखना चाहता है और पार्टी के भीतर किसी भी बड़े विद्रोह से बचना चाहता है। रणदीप सुरजेवाला जैसे वरिष्ठ नेताओं ने भी सार्वजनिक रूप से कहा है कि “कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन की कोई योजना नहीं है।”
सिद्धारमैया का अनुभव और राजनीतिक कौशल:
सिद्धारमैया एक अनुभवी राजनेता हैं और दूसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं। उनका प्रशासनिक अनुभव और विभिन्न समुदायों में उनकी स्वीकार्यता भी एक महत्वपूर्ण कारक है। उन्होंने खुद आत्मविश्वास से कहा है कि वे पांच साल तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे, जो उनके मजबूत राजनीतिक स्थिति को दर्शाता है।
हालांकि, कर्नाटक की राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है। डीके शिवकुमार ने भी अपनी चुप्पी साध रखी है और अपने ‘विकल्प ही क्या है’ वाले बयान से यह संदेश दिया है कि वह आलाकमान के फैसले से बंधे हैं, लेकिन उनके समर्थक अभी भी ‘सही समय’ का इंतजार कर रहे हैं। फिलहाल, सिद्धारमैया की कुर्सी सुरक्षित दिख रही है, लेकिन कर्नाटक की राजनीति में हलचल जारी रहेगी।