कांग्रेस – भारतीय राजनीति में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। लोकसभा चुनाव के बाद, जहां कांग्रेस ने जातीय जनगणना और ओबीसी अधिकारों के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया, वहीं अब पार्टी इस समुदाय को अपने साथ मजबूती से जोड़ने के लिए एक बड़ी रणनीति पर काम कर रही है। इसी क्रम में, कांग्रेस की अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) ओबीसी सलाहकार परिषद की पहली और बेहद अहम बैठक 15 जुलाई को कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में होने जा रही है। इस बैठक में देशभर से ओबीसी समुदाय के कई बड़े नेता शामिल होंगे, जिनमें राज्यों के मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री भी शामिल हैं।
पैनल का गठन और इसका महत्व:
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के निर्देश पर हाल ही में 24 सदस्यों वाली इस ओबीसी सलाहकार परिषद का गठन किया गया था। इस पैनल में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, साथ ही सचिन पायलट, बीके हरिप्रसाद, वीरप्पा मोइली, अनिल जयहिंद, जितेंद्र बघेल, सुभाषिनी यादव, महेश गौड़ और गुरदीप सिंह सप्पल जैसे अनुभवी और प्रभावशाली नेता शामिल हैं।
इस पैनल को बनाने का मुख्य उद्देश्य देश भर में ओबीसी समुदाय से जुड़े मुद्दों पर गहराई से मंथन करना और एक ठोस रणनीति तैयार करना है। पैनल के नेताओं की जिम्मेदारी होगी कि वे ओबीसी समुदाय की आकांक्षाओं को समझें, उनकी समस्याओं को उजागर करें और पार्टी को यह सलाह दें कि कैसे इन मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाया जाए ताकि ओबीसी वोटबैंक एक बार फिर कांग्रेस की ओर आकर्षित हो। यह कांग्रेस के लिए एक मौका है अपनी पुरानी जमीन को वापस पाने का।
बेंगलुरु बैठक का अहम एजेंडा:
बेंगलुरु के ‘भारत जोड़ो भवन’ में शाम 6 बजे होने वाली यह बैठक कई मायनों में खास होगी और इसमें कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होने की संभावना है:
- जातीय जनगणना की वकालत: कांग्रेस लंबे समय से देशव्यापी जातीय जनगणना की मांग कर रही है। राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव में इसे एक केंद्रीय मुद्दा बनाया था। बैठक में जातीय जनगणना के आंकड़ों के आधार पर ओबीसी समुदाय को उनका उचित हक और भागीदारी कैसे दिलाई जाए, इस पर विस्तार से रणनीति बनेगी।
- आरक्षण की 50% सीमा खत्म करना: केंद्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना के ऐलान के बाद, कांग्रेस ने आरक्षण पर लगी 50% की सीमा को हटाने की मांग तेज कर दी है। बैठक में इस कानूनी और राजनीतिक पहलू पर चर्चा होगी और इसे लेकर पार्टी का रुख और स्पष्ट किया जाएगा।
- निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण: यह भी एक महत्वपूर्ण मांग है जिस पर कांग्रेस जोर दे रही है। पैनल इस बात पर विचार करेगा कि निजी शिक्षण संस्थानों में ओबीसी आरक्षण को कैसे लागू कराया जाए और इसे लेकर आंदोलन की क्या दिशा हो।
- संगठन और सरकार में ओबीसी प्रतिनिधित्व: पार्टी संगठन के भीतर और सरकारी नियुक्तियों में ओबीसी समुदाय को और अधिक प्रतिनिधित्व कैसे दिया जाए, इस पर मंथन होगा।
- चुनावी रणनीति: आगामी विधानसभा चुनावों (जैसे हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, दिल्ली) और 2029 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए, देशभर में ओबीसी मतदाताओं को कांग्रेस से जोड़ने की प्रभावी रणनीति बनाई जाएगी। खासकर उन राज्यों पर ध्यान दिया जाएगा जहां ओबीसी वोटर्स का प्रभाव बहुत अधिक है।
कांग्रेस के लिए क्यों है यह कवायद इतनी जरूरी?
पिछले कुछ दशकों से कांग्रेस का ओबीसी वोटबैंक कमजोर पड़ा है, जिसका सीधा असर उसके चुनावी प्रदर्शन पर दिखा है। लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस ने भले ही अच्छा प्रदर्शन किया हो, लेकिन पार्टी ने महसूस किया है कि अगर उसे वास्तव में सत्ता में वापसी करनी है, तो ओबीसी मतदाताओं को वापस अपने पाले में लाना बेहद जरूरी है। राहुल गांधी का ‘जितनी आबादी, उतना हक’ का नारा और सामाजिक न्याय पर उनका जोर, इस रणनीति का आधार है।
यह सलाहकार परिषद राहुल गांधी के इसी विजन को आगे बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण कदम है। कांग्रेस का मानना है कि ओबीसी समुदाय के मुद्दों को मजबूती से उठाकर और उन्हें उचित सम्मान देकर ही वह अपनी पुरानी पकड़ हासिल कर पाएगी और अपनी सांगठनिक जमीन को मजबूत कर सकेगी।
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आगे क्या उम्मीदें हैं?
बेंगलुरु की यह पहली बैठक कांग्रेस की ओबीसी रणनीति की नींव रखेगी। उम्मीद की जा रही है कि बैठक के बाद कांग्रेस ओबीसी समुदाय के लिए कुछ बड़े ऐलान कर सकती है, या कम से कम अपनी मांगों को और अधिक प्रभावी ढंग से उठाने की रणनीति तैयार करेगी। यह बैठक यह भी बताएगी कि कांग्रेस ओबीसी समुदाय के साथ कितनी गंभीर है और क्या वह वाकई उन्हें राजनीतिक और सामाजिक रूप से सशक्त करने के लिए ठोस और नए कदम उठा पाएगी।
कुल मिलाकर, एआईसीसी ओबीसी सलाहकार पैनल की यह बैठक भारतीय राजनीति में ओबीसी समुदाय की भूमिका और कांग्रेस की भविष्य की दिशा के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण साबित होगी। सभी की निगाहें बेंगलुरु पर टिकी होंगी कि इस मंथन से क्या निकलता है और कांग्रेस ओबीसी समुदाय को अपने साथ जोड़ने में कितनी कामयाब होती है।