बाइक टैक्सी बैन पर 2 अहम बातें: कर्नाटक हाईकोर्ट में एग्रीगेटर-मालिकों ने बताई ‘ज़रूरत’

बाइक टैक्सी- कर्नाटक उच्च न्यायालय में बाइक टैक्सी सेवाओं पर प्रतिबंध के मामले में एक नया मोड़ आ गया है। ऐप-आधारित एग्रीगेटर और बाइक मालिकों ने अदालत में पुरजोर दलील दी है कि बाइक टैक्सी अब शहरों की ‘विलासिता’ नहीं, बल्कि ‘आवश्यकता’ बन चुकी हैं। उन्होंने तर्क दिया कि ये सेवाएं न केवल यात्रियों के लिए सुविधाजनक और किफायती विकल्प प्रदान करती हैं, बल्कि हजारों लोगों के लिए रोजगार का साधन भी हैं, और इन पर प्रतिबंध लगाना अनुचित है।

प्रतिबंध के बाद उठा सवाल

दरअसल, कर्नाटक सरकार ने निजी (सफेद नंबर प्लेट) वाहनों को व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए बाइक टैक्सी के रूप में इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी थी। सरकार का तर्क था कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत निजी वाहनों को बिना वाणिज्यिक परमिट के व्यावसायिक सेवाओं के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता। इस प्रतिबंध के बाद ओला, उबर और रैपिडो जैसी प्रमुख बाइक टैक्सी कंपनियों के संचालन पर रोक लग गई, जिससे लाखों यात्रियों और ड्राइवरों पर सीधा असर पड़ा। इसके खिलाफ कंपनियों और कुछ बाइक मालिकों ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

एग्रीगेटर की दलील: अंतिम-मील कनेक्टिविटी और रोजगार

सुनवाई के दौरान, एग्रीगेटर कंपनियों के वकीलों ने अदालत को बताया कि बाइक टैक्सी सेवाएं शहरों में अंतिम-मील कनेक्टिविटी (Last-mile connectivity) के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक परिवहन अक्सर हर नुक्कड़ तक नहीं पहुंच पाता और ऐसे में बाइक टैक्सी एक किफायती और तेज विकल्प प्रदान करती हैं। विशेष रूप से भीड़भाड़ वाले शहरों में, जहां ट्रैफिक जाम एक बड़ी समस्या है, बाइक टैक्सी कम समय में गंतव्य तक पहुंचने का एक प्रभावी साधन हैं।

कंपनियों ने यह भी तर्क दिया कि वे हजारों बेरोजगार युवाओं को रोजगार दे रही हैं। उन्होंने बताया कि बड़ी संख्या में लोग अपनी बाइकों का उपयोग करके इन प्लेटफॉर्म से जुड़कर अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं, जिससे उनके परिवारों का भरण-पोषण हो रहा है। यदि इन सेवाओं पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया जाता है, तो इन लोगों की आजीविका पर संकट आ जाएगा।

बाइक मालिकों का पक्ष: जीवनयापन का साधन

बाइक मालिकों, जो इन प्लेटफॉर्म से जुड़े हुए हैं, ने भी अपनी स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने अदालत से कहा कि बाइक टैक्सी चलाना उनके लिए सिर्फ एक अतिरिक्त आय का स्रोत नहीं, बल्कि कई मामलों में उनके जीवनयापन का मुख्य साधन बन चुका है। उन्होंने तर्क दिया कि वे अपनी गाढ़ी कमाई से बाइक खरीदते हैं और फिर उसे बाइक टैक्सी के रूप में चलाकर अपने और अपने परिवार का पेट पालते हैं। यदि उन पर अचानक प्रतिबंध लगा दिया जाता है, तो वे आर्थिक रूप से टूट जाएंगे।

उन्होंने यह भी बताया कि वे यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा का पूरा ध्यान रखते हैं। कई ड्राइवरों ने कहा कि वे सभी आवश्यक दस्तावेज रखते हैं और यात्रियों को सुरक्षित रूप से उनके गंतव्य तक पहुंचाते हैं। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि प्रतिबंध लगाने के बजाय, एक उचित नियामक ढांचा (regulatory framework) तैयार किया जाए जो इन सेवाओं को कानूनी रूप से चलाने की अनुमति दे।

सरकार का पक्ष: नियम सर्वोपरि

हालांकि, कर्नाटक सरकार ने अपने रुख पर कायम रहते हुए कहा कि नियम और कानून सर्वोपरि हैं। सरकार के वकीलों ने दोहराया कि निजी वाहनों को व्यावसायिक उपयोग के लिए अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्होंने सुरक्षा चिंताओं और बीमा संबंधी मुद्दों को भी उठाया, जिसमें कहा गया कि यदि निजी वाहन पर सवारी के दौरान कोई दुर्घटना होती है, तो यात्री को पर्याप्त मुआवजा मिलना मुश्किल हो सकता है। सरकार ने यह भी उल्लेख किया कि बाइक टैक्सी सेवाओं के कारण पारंपरिक टैक्सी और ऑटो-रिक्शा चालकों की आजीविका पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, क्योंकि उन्हें सभी परमिट और करों का भुगतान करना पड़ता है।

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आगे की राह

उच्च न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनी हैं और इस संवेदनशील मुद्दे पर विचार कर रहा है। यह मामला सिर्फ कर्नाटक तक सीमित नहीं है, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी इस पर बहस चल रही है। सरकार, एग्रीगेटर और ड्राइवरों के बीच एक संतुलन स्थापित करना आवश्यक है ताकि यात्रियों को सुविधा मिलती रहे, ड्राइवरों को रोजगार मिले, और साथ ही नियमों का पालन और सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

यह देखना दिलचस्प होगा कि अदालत इस मामले में क्या फैसला सुनाती है। यह फैसला भविष्य में भारत में बाइक टैक्सी सेवाओं के विनियमन और संचालन के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम कर सकता है। बाइक टैक्सी के समर्थकों को उम्मीद है कि अदालत उनकी दलीलों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगी और उन्हें अपनी सेवाओं को जारी रखने की अनुमति देगी, संभवतः कुछ नए नियमों और शर्तों के साथ।

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