उत्तराखंड की ‘योग नीति 2025’: भारत की पहली पहल, बनेगा वैश्विक वेलनेस राजधानी!

उत्तराखंड: ‘देवभूमि’ उत्तराखंड ने योग और वेलनेस के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। राज्य सरकार ने भारत की पहली ‘योग नीति 2025’ को मंजूरी दे दी है, जिसका लक्ष्य उत्तराखंड को वैश्विक योग और वेलनेस राजधानी के रूप में स्थापित करना है। यह नीति सिर्फ योग को बढ़ावा देने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य योग को स्वास्थ्य, पर्यटन और रोजगार से जोड़कर राज्य के समग्र विकास को गति देना है।

नीति का मुख्य उद्देश्य और विजन:

उत्तराखंड की नई योग नीति का मुख्य उद्देश्य राज्य की आध्यात्मिक धरोहर और प्राकृतिक सौंदर्य का लाभ उठाते हुए इसे दुनिया भर के योग प्रेमियों और वेलनेस पर्यटकों के लिए एक प्रमुख केंद्र बनाना है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस नीति की घोषणा करते हुए कहा कि यह ‘हर घर योग, हर जन निरोग’ की अवधारणा को साकार करेगी।

नीति के प्रमुख बिंदु और फायदे:

  1. योग हब का विकास: नीति के तहत, 2030 तक उत्तराखंड में पांच नए योग हब स्थापित किए जाएंगे। इनमें जागेश्वर, मुक्तेश्वर, व्यास घाटी, टिहरी झील और कोलीढेक झील जैसे प्रमुख पर्यटन स्थलों को योग केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। इन क्षेत्रों में स्थापित होने वाले योग केंद्रों को विशेष प्राथमिकता दी जाएगी।
  2. रोजगार के अवसर: यह नीति हजारों नए रोजगार के अवसर पैदा करेगी। अनुमान है कि इससे 13,000 से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा। 2,500 योग शिक्षक योग सर्टिफिकेशन बोर्ड से प्रमाणित होंगे, और 10,000 से अधिक योग अनुदेशकों को होम स्टे, होटल और वेलनेस सेंटरों में रोजगार मिलेगा। यह खासकर पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन रोकने में मदद करेगा।
  3. सब्सिडी और अनुदान: योग और ध्यान केंद्र स्थापित करने के लिए सरकार प्रोत्साहन दे रही है। पर्वतीय क्षेत्रों में योग केंद्र खोलने पर 50% तक (अधिकतम ₹20 लाख) और मैदानी क्षेत्रों में 25% तक (अधिकतम ₹10 लाख) की सब्सिडी मिलेगी। इसके अलावा, योग और प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान (रिसर्च) गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए ₹10 लाख तक का अनुदान भी दिया जाएगा।
  4. गुणवत्ता और मानकीकरण: योग संस्थानों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए नियम और दिशा-निर्देश तैयार किए जाएंगे। योग प्रमाणन बोर्ड के तहत योग संस्थानों का पंजीकरण और मान्यता प्राप्त करना अनिवार्य होगा। रेटिंग प्रणाली भी विकसित की जाएगी ताकि योग सेवाओं की गुणवत्ता बनी रहे।
  5. आयुष सुविधाओं का विस्तार: मार्च 2026 तक राज्य के सभी आयुष हेल्थ और वेलनेस सेंटरों में योग सेवाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। यह पहल आयुर्वेद और योग जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को जन-जन तक पहुंचाने में मदद करेगी। समुदाय आधारित माइंडफुलनेस कार्यक्रम भी शुरू किए जाएंगे, जो अलग-अलग आयु, लिंग और वर्ग की जरूरतों को ध्यान में रखेंगे।
  6. शिक्षा में योग: योग को स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाएगा, ताकि शुरुआती स्तर से ही छात्रों को योग के महत्व और लाभों से अवगत कराया जा सके। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ सहयोग कर योग के क्षेत्र में क्षमता निर्माण किया जाएगा।
  7. आध्यात्मिक आर्थिक क्षेत्र: केंद्र सरकार के सहयोग से गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों में एक-एक स्पिरिचुअल इकोनॉमिक जोन स्थापित किए जाएंगे। इन क्षेत्रों को आयुर्वेद, योग और आध्यात्मिक पर्यटन के लिए अंतरराष्ट्रीय केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। इससे न केवल पर्यटन बढ़ेगा, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।

पर्यटन पर प्रभाव:

यह नीति उत्तराखंड में योग पर्यटन को अभूतपूर्व बढ़ावा देगी। ऋषिकेश को पहले से ही ‘योग नगरी’ के रूप में जाना जाता है, और अब इस नीति के माध्यम से राज्य के अन्य खूबसूरत स्थानों को भी योग रिट्रीट, आयुर्वेदिक चिकित्सा और आध्यात्मिक पर्यटन के केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। इससे अधिक से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यटक उत्तराखंड की ओर आकर्षित होंगे, जिससे पर्यटन उद्योग में बूम आएगा।

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निष्कर्ष:

उत्तराखंड की ‘योग नीति 2025’ भारत की आध्यात्मिक विरासत और आधुनिक आवश्यकताओं का एक बेहतरीन मिश्रण है। यह न केवल राज्य की आय और रोजगार के अवसरों में वृद्धि करेगी, बल्कि उत्तराखंड को सही मायने में वैश्विक वेलनेस मानचित्र पर एक प्रमुख स्थान दिलाएगी। यह नीति देश के अन्य राज्यों के लिए भी एक प्रेरणा का स्रोत बनेगी कि कैसे अपनी पारंपरिक शक्तियों का उपयोग कर समग्र विकास किया जा सकता है।

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