उन्हें ज़मीन का वादा किया गया था। सुरक्षा का वादा किया गया था। कमाई का वादा किया गया था।
जो उन्होंने दिया वह था – खामोशी, इंतज़ार, और अपने ही पैसे के लिए लड़ाई।
यहां सिर्फ़ रिफंड की कहानी नहीं है — यहां टूटा हुआ भरोसा है, झूठ बोलकर पैसे हड़पे हुए हैं, और यह इतना बड़ा घोटाला है कि 10 साल बाद भी इसका कोई जवाब नहीं मिला
PACL में असल में हुआ क्या?
PACL (पर्ल्स एग्रोटेक कॉर्पोरेशन लिमिटेड) ने दावा किया कि वह रियल एस्टेट में काम कर रही है। काग़ज़ों पर लोगों को ज़मीन देने का वादा किया गया। हक़ीक़त में यह एक कम जोखिम पर उच्च रिटर्न देने वाली निकली।
इस कंपनी ने लगभग ₹60,000 करोड़ रुपए जमा किए — और वो भी 5.5 करोड़ से ज्यादा जमा करने वालों से, जिनमें ज़्यादातर ग्रामीण और नीचे वर्ग के लोग थे।
लोगों ने इसमें अपनी जीवनभर की कमाई लगाई — किसी ने अपना सोना बेचा, किसी ने कर्ज़ लिया, किसी ने भूखे पेट रहकर पैसा जोड़ा… यह सोच कर कि यह उनका सुरक्षित भविष्य होगा।
लेकिन जब सच्चाई सामने आई, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
यह सब किसने उन्हें दिया?
सच कड़वा है — PACL अंधेरे में नहीं चल रही थी।
उनके बड़े-बड़े ऑफिस थे, स्टेडियम में इवेंट्स और हर शहर में होर्डिंग्स। नामी हस्तियां उनके मंच पर थीं। रिबन कटिंग, हँसी-खुशी, प्रचार भी होते थे।
तो फिर रेगुलेटर्स कहाँ थे?
कार्रवाई पहले क्यों नहीं हुई?
घोटाले के बाद ही क्यों जागे सब?
ये सवाल आज भी समझ में नहीं हैं।
सेलेब्रिटी – प्रमोशन या भागीदारी?
यह मुद्दा नाज़ुक है लेकिन ज़रूरी।
जब कोई मशहूर चेहरा किसी कंपनी का प्रचार करता है, तो आम जनता उस पर भरोसा कर लेती है। PACL को यह बखूबी पता था। उनके कार्यक्रमों में सितारे थे, ग्लैमर था — और साथ ही धोखा भी।
- क्या उन्हें घोटाले का पता था? शायद नहीं।
- लेकिन क्या उन्होंने ज़िम्मेदारी से जांच की थी?
- यह सवाल पूछते रहना मीडिया का फ़र्ज़ है।
क्योंकि जब आम आदमी किसी सितारे की वजह से धोखा खा जाए, तब चुप्पी भी एक धोखा बन जाती है।
रिफंड या सिर्फ़ भ्रम?
SEBI ने रिफंड की प्रक्रिया शुरू की, लेकिन आज भी निवेशकों के चेहरों पर सिर्फ़ मायूसी है।
डॉक्युमेंट्स अपलोड किए थे, अभी तक कोई जवाब नहीं आया…”
“मेरे पास रसीद नंबर है, लेकिन स्टेटस नहीं दिख रहा…”
“बस एक उम्मीद है… बस एक छोटी सी उम्मीद…”
कहा गया — ऑनलाइन जाओ, फॉर्म भरो, रसीदें अपलोड करो।
लेकिन गांवों में जहां इंटरनेट भी मुश्किल है, ये प्रक्रिया एक सज़ा बन गई।
आज भी हज़ारों लोग ऑनलाइन, यूट्यूब वीडियोज़ पर खोजते रहते हैं — बस एक सवाल के लिए:
“मेरा पैसा कब मिलेगा?”
सिस्टम का असली चेहरा
अब यह कहानी सिर्फ़ PACL की नहीं रही।
यह सवाल है कि एक कंपनी जिसके पास असली संपत्ति नहीं थी, वह इतनी बड़ी कैसे हो गई?
कैसे उसे अप्रूवल मिलते गए?
टैक्स विभाग, लोकल अथॉरिटी और पुलिस सब कहाँ थे?
और क्यों जब आम गरीब लोगों को ठगा जा रहा था , तब सिस्टम मुंह बंद करके क्यों देख रहा था ?
क्या यह सब किसी अमीर वर्ग के साथ हुआ होता, तो भी यही हाल होता?
ज़मीनी हकीकत – असली दर्द
कई गांवों में लोग आज भी परिवार से छुपाकर बैठते हैं कि उन्होंने पैसा गंवा दिया।
कुछ विधवाएं थीं जिन्होंने बच्चों का भविष्य सोचकर पैसा लगाया था ।
कुछ मज़दूर थे जो एक दिन की दिहाड़ी छोड़कर लाइन में लगे रहे — और जवाब मिला: “स्टेटस पेंडिंग है।”
ये सिर्फ़ पेसा जमा करने वाले नहीं है — ये पीड़ित हैं।
लालच के, लापरवाही के, और एक टूटी हुई व्यवस्था के।
अब क्या होना चाहिए?
- मीडिया को इसे पुरानी खबर की तरह बंद नहीं करना चाहिए।
- जो सेलेब्रिटी प्रचार में शामिल थे, उन्हें कम से कम अफ़सोस ज़ाहिर कराना चाहिए।
- SEBI को प्रक्रिया तेज करनी चाहिए, आसान बनानी चाहिए, और ठगों को जेल भेजना चाहिए।
- ज़मीनी रिपोर्टिंग लौटनी चाहिए — सिर्फ़ हेडलाइन नहीं, आम लोगों की आवाज़ें भी सुननी होंगी।
यह एक सोचा समझा जाल था — और हमने इसे होने दिया
चलो मान लेते हैं — PACL एक जाल था। इसमें ग्लैमर था, लालच था, और सरकारी कमज़ोरियाँ थीं।
एक पत्रकार के तौर पर मैं मानता हूँ — अब चुप रहने का वक़्त नहीं है।
हमें हर उस इंसान के लिए बोलना होगा जिसने पैसा गंवाया, चैन गंवाया, और कहीं-कहीं तो जान तक गंवा दी।
यह लड़ाई सिर्फ़ रिफंड की नहीं है।
यह लड़ाई है जवाबदेही की, सच की — और उस भारत की, जहां फिर कभी ऐसा बड़ा घोटाला न हो सके।
इसे एक भूली हुई खबर मत बनने दो।